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जय श्री राम!!

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Play Hanuman Chalisa

Happy rose day

आरति कीजै हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ||

जाके बल से गिरिवर कांपै | रोग – दोष जाके निकट न झांपै ||

अंजनी पुत्र महा बलदाई | सन्तन के प्रेम सदा सहाई ||

दे बीरा रघुनाथ पठाये | लंका जारि सिया सुधि लाये ||

लंका सो कोट समुद्र सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई||

लंक जारि असुर संहारे | सिया रामजी के काज सँवारे ||

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे | आनि सजीवन प्रान उबारे||

पैठि पताल तोरि जम – कारे | अहिरावन की भुजा उखारे ||

बायें भुजा असुर दल मारे | दहिने भुजा सन्तजन तारे ||

सुर नर मुनि आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ||

कंचन थार कपूर लौ छाई | आरती करत अंजना माई ||

जो हनुमान जी की आरती गावै | बसि बैकुंठ परम पद पावै ||

लंक विध्वंस किये रघुराई | तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ||

आरति कीजै हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ||



यूँ ही नहीं झुकती दुनिया तेरे दर पे,
तकदीरें बनती हैं बाबा तेरे दर पे।।
बाबा जिनको याद करे वो लोग निराले होते हैं,
बाबा जिनका नाम पुकारे किस्मत वाले होते हैं।
बाबा जब भी तुझको पुकारा हैं,
बिन मांगे सब पाया हैं..।



बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
( मैं अपनी अविद्या को स्वीकार करते हुए आपको याद करता हूँ श्री हनुमान । कृपया मुझे शक्ति, विद्या और ज्ञान दें और मुझे रोगों और चोटों से राहत दें ॥ )

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
( जय हनुमान – आप ज्ञान और गुण के सागर हैं । जय हो बंदरों के राजा की – वह जिनकी चमक तीनो लोक उज्ज्वल करती है ॥ )

राम दूत अतुलित बल धामा । अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
( वह राम के प्रिय दूत हैं और अनंत शक्ति के स्वामी हैं । वह अंजनी देवी और पवन(वायु देव) के पुत्र हैं ॥ )

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
( आप महावीर हैं, महान कर्मों के कर्ता हैं और आपका शरीर हीरे जैसा मजबूत है । आप विनाशकारी विचारों से छुटकारा देते हैं, और मन को रचनात्मक विचारों से भर देते हैं ॥ )

कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
( आपकी त्वचा सुनहरे रंग कि है और आप प्रभावशाली वस्त्र पहनते हैं । आप कान में बाली पहनते हैं और आपके लंबे बाल हवा में लहराते है ॥ )

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
( आपके एक हाथ में वज्र की शक्ति वाला गदा और दुसरे हाथ में झंडा है । आपका कंधों एक पवित्र मुंज घास से बने धागे से सजा हुआ है ॥ )

सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
( आप भगवान शिव के अवतार रूप हैं, आप राजा केसरी के बेटे हैं । आपके महिमा की पूरी दुनिया में पूजा की जाती है ॥ )

बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
( आप महान विद्या, सराहनीय गुणों और उच्चतम ज्ञान के अधिकारी हैं । आप हमेशा बड़े उत्साह के साथ भगवान राम के काम करने के लिए उपस्थित रहते हैं ॥ )

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
( जब आप भगवान राम की महिमा के बारे में सुनते है तब आप खुशी से उत्तेजित हो जाते हैं । आपके लिए भगवान राम, उनके भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के दिलों में एक खास जगह है ॥ )

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
( एक छोटासा रूप लेकर आप माता सीता को मिल आये । फिर एक बड़ेसे रूप में बदलकर, आपने लंका को आग में नष्ट किया ॥ )

भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
( एक भयानक रूप में, आपने राक्षसों को नष्ट कर दिया, । और आसानी से भगवान राम के सभी काम में कामयाब हुए ॥ )

लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
( आप लक्ष्मण को सजीव करने के लिए संजीवनी जड़ी बूटी लाए । और रघु कबीले के बहादुर योद्धा, श्री राम ने खुशी और राहत के साथ, आपको गले लगा लिया ॥ )

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
( भगवान राम ने आपकी लगातार प्रशंसा की । और घोषणा की कि आप उनको अपने भाई भरत जितने प्रिय थे ॥ )

सहस बदन तुह्मारो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
( शेषनाग हमेशा अपने हजार सिरों से तुम्हारे भजन गायेगा । यह कहते हुए देवी लक्ष्मी के पति विष्णु के अवतार, भगवान राम ने आपको गले लगाया ॥ )

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
( बाबा संक, भगवान ब्रह्मा और कई अन्य संत । नारद मुनि, देवी सरस्वती और कई अन्य संत ॥ )

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
( भगवान यम, भगवान कुबेर (खजाने के भगवान) और विभिन्न दिक्पाल । यहाँ तक कि कवि और गायक भी आपकी महिमा के वर्णन के साथ न्याय नहीं कर सकते ॥ )

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
( आपने राजा सुग्रीव पे एक उपकार किया । उसकी भगवान राम से भेंट कराकर उसे अपने राज्य को पाने में मदद की ॥ )

तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना । लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
( रावण के भाई विभीषण ने आपकी सलाह को स्वीकार कर लिया । नतीजतन वह लंका का राजा बनने में सफल रहा और उसी रूप में वो पूरी दुनिया में जाना जाता है ॥ )

जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
( सूर्य जो पृथ्वी से बहुत दूर खड़ा है । आपने उसको निगल लिया था ये धारणा के साथ कि यह आकाश में एक मीठा फल था ॥ )

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
( अपने मुंह में भगवान राम की अंगूठी का भार उठाते हुए । आप समुद्र को लांघ कर लंका तक पहुंचे इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं है ॥ )

दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
( जो भी जटिल कार्य इस दुनिया में मौजूद हैं । वे आपके अनुग्रह से आसान हो जाते हैं ॥ )

राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
( आप उस द्वार के संरक्षित है जो कि भगवान राम की ओर जाता है । और कोई भी आपकी अनुमति के बिना यह द्वार को पार नहीं कर सकता ॥ )

सब सुख लहै तुह्मारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
( जो भी आपकी शरण लेने के लिए आता है, उसे सभी खुशीयां प्राप्त हैं । जो लोग आपके द्वारा संरक्षित हैं उन्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है ॥ )

आपन तेज सह्मारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
( केवल आप ही हैं जो उस त्रुटिहीन ऊर्जा को नियंत्रित कर सकते हैं । जिसके सामने तीनों लोक डर से कांपते हैं ॥ )

भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
( भूत और बुरी आत्माएं पास नहीं आती हैं । जब भी कोई अपका नाम पुकारता है ॥ )

नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
( सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और सभी दर्द भंग हो जाते हैं । जब भी कोई भक्त लगातार बहादुर भगवान हनुमान के नाम को दोहराता है ॥ )

सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
( भगवान हनुमान सभी प्रकार के मुसीबतों से रक्षा करते है । उसकी जो अपने मन, कार्यों और शब्दों के साथ उनपे ध्यान करता हैं ॥ )

सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
( भगवान राम सभी के राजा हैं, यहां तक कि ऋषियों और संतों के भी । और उनके सब काम का ध्यान आप ही ने रखा है, हे भगवान हनुमान ॥ )

और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
( जो कोई भी आपके सामने अपने मन की इच्छाओं को व्यक्त करता है, हे भगवान हनुमान । अपने जीवन में वह सब प्रयासों के लिए अनंत फल प्राप्त करने में सक्षम होता है ॥ )

चारों जुग परताप तुह्मारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
( आपकी महिमा समय के चार युग भर में फैली हुई है । और आपकी प्रसिद्धि पूरी दुनिया को रोशनी देती है ॥ )

साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
( आप संतों और ऋषियों के रक्षक हैं । आप राक्षसों के नाशक और भगवान राम के प्यारे हैं ॥ )

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
( आप अलौकिक शक्तियों के आठ रूपों और खजाने के नौ प्रकार के संभाजक हैं । और माँ जानकी (सीता – भगवान राम की पत्नी) ने उन क्षमताओं को पाने का आपको आशीर्वाद दिया था ॥ )

राम रसायन तुह्मरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
( भगवान राम की भक्ति का रहस्य आपके पास है । आप हमेशा ही उनके सेवा में रहेंगे ॥ )

तुह्मरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
( आपकी प्रशंसा में गाए हुए गाने भगवान राम को भी खुश कर देते हैं । और वह कई जन्मों के सभी दर्द को हटा देते हैं ॥ )

अन्त काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
( जो भी आपकी प्रशंसा में गाने गाता है, उसे अपने जीवन के अंत में भगवान राम के निवास में शरण मिलता है । और उस जगह में जन्म लेने वाले हर प्राणी को, हरि के भक्त के रूप में पहचाना जाता है ॥ )

और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
( यहां तक कि कोई अगर अन्य देवताओं की पूजा ना भी करे । वह सिर्फ भगवान हनुमान की सेवा करके सभी सुख प्राप्त कर सकता हैं ॥ )

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
( कठिनाइयाँ गायब हो जाती हैं और सभी दर्द भंग हो जाते हैं । उसके लिए जो मजबूत और बहादुर भगवान हनुमान पर ध्यान करता है ॥ )

जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
( जय, जय, जय हो आपकी, भगवान हनुमान । कृपया मुझे अपनी दया दिखाएँ, बस एक शिक्षक (गुरु) की तरह ॥ )

जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
( जो कोई भी इस प्रार्थना का पाठ एक सौ बार करेगा । वो सभी बंधनों से मुक्त हो जायेगा और बड़ी खुशियों को प्राप्त करेगा ॥ )

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
( जो कोई भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ेगा । उसे पूर्णता प्राप्त होगी – देवी गौरी के पति (भगवान शिव) इस के गवाह हैं ॥ )

तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
( तुलसीदास जो हमेशा के लिए हरि (तथा भगवान राम) के भक्त है । वह आपसे निवेदन करता है की आप उसके दिल में निवास लें ॥ )

॥दोहा॥
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप । राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
( हे भगवान हनुमान – पवन के पुत्र और कठिनाइयों के हर्ता जिनका रूप अत्यधिक शुभ और दिव्य है । भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ कृपया मेरे दिल में निवास लें ॥ )

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