निबन्ध 3 (600 शब्द) - बाल गंगाधर तिलकः शिक्षा और आंदोलन
परिचय
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जूलाई 1856 को वर्तमान के महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले मे एक मराठी ब्राम्हण परिवार मे हुआ था। उनके जन्म का नाम केशव गंगाधर तिलक था। वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पहले कट्टरपंथी नेता बने। उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी के बाद दूसरे स्थान पर आती है।
शिक्षा और प्रभाव (Education and Influences)
इनके पिता गंगाधर तिलक एक स्कूल शिक्षक थे, उनकी मृत्यु तब ही हो गयी थी जब वह 16 साल के थे। उनके पिता की मृत्यु के कुछ महीने पहले ही तिलक की सत्यभामबाई से शादी हुई थी।
अपने पिता की मृत्यु के बाद तिलक ने 1877 मे पुणे
े डेक्कन कालेज से बी.ए. गणित की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्होने 1879 मे गवर्नमेंट लॉ कालेज मुम्बई से लॉ की डिग्री प्राप्त की।
तत्पश्चात तिलक ने शीघ्र ही पत्रकारिता की ओर आगे बढ़ने से पहले एक शिक्षक के रुप मे भी काम किया। विष्णुशास्त्री चिपलूनकर नाम के एक मराठी लेखक से तिलक काफी प्रभावित थे। चिपलुनकर से प्रेरित होकर तिलक ने 1880 मे एक स्कूल की स्थापना की। आगे बढ़ते हुए तिलक और उनके कुछ करीबी साथियों ने 1884 मे एक डेक्कन सोसाइटी की स्थापना की।
राष्ट्रीय आंदोलन मे भागीदारी (Participation in National Movement)
शरुआत से ही तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए थे। एक ब्रिटिश लेखक और स्टेटमैन, ‘वेलेंटाइन चिरोल’ ने उन्हें “भारतीय अशांति का पिता” कहा था।
वो चरमपंथी क्रांतिकारियों का समर्थन करने के पक्षकार थे, और अपने अखबार केसरी में खुल कर उनके कार्यो की प्रसंशा करते थे। उन्हे प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को अपने अखबार केसरी के द्वारा समर्थन करने के कारण बर्मा के मांड़ले जेल मे छह साल के कैद की सजा सुनाई गई थी। चाकी और बोस दोनों पर दो अंग्रेजी महिलाओं की हत्या का आरोप लगाया गया था।
तिलक ने छह साल 1908-14 तक मांडले जेल मे बिताया, जहां उन्होने “गीता रहस्य” लिखी थी। पुस्तक की कई प्रतियों को बेचने से जो धनराशि एकत्र हुई थी, उसे स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन के लिए दान के रुप मे दे दिया गया था।
मांड़ले जेल से रिहा होने के बाद तिलक ने 1909 के मिंटो-मॉर्ली सुधार के माध्यम से ब्रिटिश भारत के शासन मे भारतीयों की बड़ी भागीदारी का समर्थन किया था।
प्रारंभिक स्थिति मे तिलक स्वतंत्रता हासिल करने के लिए सीधी कार्यवाही के समर्थन मे थे लेकिन बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रभाव मे आने के बाद उन्होने शांतिपुर्ण विरोध प्रदर्शन की संवैधानिक दृष्ट्रिकोण को अपना लिया था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मे रहते हुए तिलक, महात्मा गांधी के समकालीन बन गए थे। वह उस समय महात्मा गांधी के बाद सबसे लोकप्रिय नेता थे। गांधी, तिलक के साहस और देशभक्ति की सराहना भी किया करते थे।
कई बार गंगाधर तिलक ने अपने शर्तो की मांग के लिए गांधी जी को कट्टरपंथी रुख अपनाने के लिए मनाने की कोशिश भी की, लेकिन गांधी ने सत्याग्रह के अपने विश्वास को दबाने से इनकार कर दिया।
हिन्दू-भारतीय राष्ट्रवाद (Hindu-Indian Nationalism)
बाल गंगाधर तिलक का विचार था कि यदि हिन्दू विचारधारा और भावनाओं को मिला दिया जाए तो स्वतंत्रता का यह आंदोलन अधिक सफल होगा। हिन्दू पाठ ‘रामायण’ और ‘भगवद् गीता’ से प्रभावित होकर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन को ‘कर्मयोग’ कहा, जिसका अर्थ है क्रिया का योग।
तिलक ने मांडले मे कारागार मे रहते हुए भगवद् गीता का अपनी ही भाषा मे संस्करण किया। अपनी इस व्याख्या मे उन्होने स्वतंत्रता संघर्ष के इस रुप को सशस्त्र संघर्ष के रुप मे ठहराने की कोशिश भी की।
तिलक ने योग, कर्म और धर्म जैसे शब्दों का परिचय दिया और हिन्दू विचारधारा के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम मे हिस्सा लेने को कहा। उनका स्वामी विवेकानंद के प्रति बहुत नजदीकी लगाव था और वह उन्हे एक अपवाद हिन्दू उपदेशक और उनके उपदेशों को बहुत प्रभावकारी मानते थे। दोनों एक दूसरे के बहुत करीब से जुड़े थे और विवेकानंद के निधन के बाद तिलक को उनके प्रति शोक प्रकट करने के लिए भी जाना जाता है।
तिलक सामाजिक सुधारों के पक्षकार थे, लेकिन केवल स्व-शासन की स्थिती मे वो सामाज सुधार करना चाहते थे। उनका एक ही मत था कि सामाजिक सुधार केवल अपने शासन के तहत होना चाहिए न कि ब्रिटिश शासन के अधिन होना चाहिए।
निष्कर्ष
बाल गंगाधर तिलक एक स्वतंत्रता सेनानी, एक पत्रकार, एक अध्यापक और एक समाज सुधारक थे, जिनका उद्देश्य केवल स्व-शासन था, इससे कम कुछ भी नही। उनके साहस, देशभक्ति और राष्ट्रवाद ने उन्हे भारत का महात्मा गांधी के बाद सबसे लोकप्रिय नेता बना दिया था।